चोरी की परिभाषा (definition of theft )- एडवोकेट हिमानी शर्मा 

New Delhi :- न्यायिक सेवा मुख्य परीक्षा टेस्ट सीरीज टेस्ट 5 एडवोकेट हिमानी शर्मा ,बागपत (यू.पी.)जुडीशल सर्विस अस्पिरेट्स के द्वारा लिखा हुआ उत्तर पढ़ें और कमेंट  करें

प्रश्न .1. चोरी की परिभाषा जो भारतीय दंड संहिता की धारा- 378 में दी गई है उसका विश्लेषण कीजिए? (500 शब्द)
उत्तर – भारतीय दंड संहिता 1860 के अध्याय- 17 जो कि संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में है कि धारा- 378 चोरी के अपराध के बारे में प्रावधान करती है ।
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा- 378
चोरी की परिभाषा- जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से, उस व्यक्ति की सम्मति के बिना, कोई जंगम संपत्ति बेईमानी से ले लेने का आशय रखते हुए ,वह संपत्ति ऐसे लेने के लिए हटाता है , वह चोरी करता है यह कहा जाता है ।
दूसरे शब्दों में- “जब कोई चल संपत्ति किसी व्यक्ति के कब्जे में से ,बिना कब्जाधारी की अनुमति के ,कोई व्यक्ति बेईमानी पूर्वक आशय से उठा लेता है या हटाता है ,इसे हम चोरी कहते हैं।
चोरी की परिभाषा में प्रयोग किए गए शब्दों का अर्थ-
1. व्यक्ति के कब्जे में से – वस्तु किसी व्यक्ति के कब्जे में होनी चाहिए यह आवश्यक नहीं है कि वह वस्तु का मालिक है या नहीं।
2. सम्मति के बिना- जिस व्यक्ति के कब्जे में से वस्तु ली गई है वह उसकी मर्जी के बगैर ली गई है उस को पता ही नहीं चले कि उसकी वस्तु कोई ले गया।
3. जंगम संपत्ति- जंगम संपत्ति से तात्पर्य है संपत्ति चल हो ,जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सके।
नोट- केवल चल संपत्ति की चोरी की विषय वस्तु हो सकती है।
4. बेईमानीपूर्ण आशय- जब संपत्ति ली जा रही हो तो संपत्ति को ले जाने के अर्थ में आशय बेईमानी पूर्वक होना चाहिए ।
5.संपत्ति लेने के लिए हटाता है –संपत्ति हटाने से तात्पर्य है कि जिस व्यक्ति के कब्जे में संपत्ति है उसकी पहुंच से उसे दूर करना।
नोट- दूरी मायने नहीं रखती दूरी बहुत कम भी हो सकती है और बहुत ज्यादा भी।

चोरी की परिभाषा में पांच स्पष्टीकरण दिए गए हैं-
स्पष्टीकरण 1. जब तक कोई वस्तु भुबद्ध रहती है ,जंगम संपत्ति ना होने से चोरी का विषय नहीं होती किंतु जैसे ही उसे भूमि से हटा दिया जाता है चोरी के योग्य वस्तु बन जाती है। स्पष्टीकरण- 1 बताता है कि कुछ अचल संपत्ति हैं जिनको चल संपत्ति में बदल कर चोरी की विषय वस्तु बनाया जा सकता है।
उदाहरण- एक पेड़ जो भूमि से जुड़ा होता है एक अचल संपत्ति है जिसको काटकर अलग करने से पेड़ चल संपत्ति में परिवर्तित किया जा सकता है और चल संपत्ति चोरी की विषय वस्तु होती है।

स्पष्टीकरण -2. हटाना ,जो उसी कार्य द्वारा किया गया है जिससे पृथक्करण किया गया है चोरी हो सकेगा।
पृथक्करण ,हटाना स्पष्टीकरण 2. से अर्थ निकलता है कि चोरी करने के लिए जरूरी है( वस्तु को अलग करना और ले जाना )एक ही कार्य द्वारा किए जाने चाहिए।
उदाहरण- एक पेड़ भूमि से अलग किया जाता है यानी कि पृथक किया गया है ,और उस पर पेड को ले जाया गया ,यानी कि हटाया गया एक ही कार्य द्वारा किया गया इसलिए चोरी हो सकेगा। स्पष्टीकरण 1 व 2 दोनों चल संपत्ति से संबंधित है।

स्पष्टीकरण- 3 वस्तु का हटाना किन कार्यों द्वारा किया जा सकता है ऐसे तीन कार्य बताए गए हैं-
1. बाधा को हटाना- जो उस चीज को हटाने से रुके हुए हो
2. उस चीज को किसी दूसरी चीज से पृथक करना
3. उस वस्तु को वास्तव में हटाकर

स्पष्टीकरण 4- कोई व्यक्ति किसी जीव जंतु को हटाया हुआ कहा जाता है जब वह किसी साधन द्वारा उस जीव जंतु को हटाता है या ऐसी हर चीज को हटाता है जो इस प्रकार उत्पन्न की गई गति के परिणाम स्वरूप उस जीव जंतु द्वारा हटाई जाती है। स्पष्टीकरण 4 जीव जंतु की चोरी के बारे में बताता है। उदाहरण- किसी बैल को चारे का लालच देकर ले जाना- इसमें चारे का लालच देना एक साधन की तरह प्रयोग किया गया है उस बैल को हटाने के लिए बैल को चारे का लालच देकर हटाया गया- जो की बैलगाड़ी से जुड़ा हुआ था बैलगाड़ी बेेल खींच रहा है पर यह कार्य व्यक्ति के द्वारा माना जाएगा। नोट- स्पष्टीकरण 3 व 4 किसी चीज को हटाने से संबंधित हैं।

स्पष्टीकरण- 5 सम्मति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है।
सम्मति देने का अधिकार-1. कब्जा रखने वाले व्यक्ति के पास है या
2. उसके पास जिसे उस संपत्ति को रखने का अधिकार है।
सामान्यतः स्पष्टीकरण 5 का अर्थ यह निकलता है कि यदि किसी व्यक्ति को संपत्ति देने के लिए अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति प्राप्त है वह चोरी के अपराध के अंतर्गत नहीं आएगा।

चोरी के आवश्यक तत्व-
(1) संपत्ति को बेईमानी से लेने का आशय
(2) संपत्ति चल हो
(3) अन्य व्यक्ति के कब्जे से ली गई हो
(4) सहमति का अभाव
(5) संपत्ति लेने के लिए उसे उसके स्थान से कुछ दूर तक हटाया जाना।

दृष्टांत-. ‘A’ का ‘Z’की पत्नी के साथ सहमति पूर्ण यौन संबंध था। वह ‘A’ को मूल्यवान संपत्ति देती है जिसके बारे में ‘A’यह जानता है कि वह उसके पति ‘Z’की है और उसे देने का ‘Z’ से कोई प्राधिकार नहीं मिला है।’A’संपत्ति को बेईमानी से ले लेता है। ‘A’ने चोरी का अपराध किया है।

दृष्टांत- ‘B’सोने की अंगूठी ‘A’के कब्जे से ‘A’ही सहमति के बिना इस आशय से लेता है कि जब तक ‘A’ कुछ धन ‘B’ को नहीं देता ‘B’ वह अंगूठी ‘A ‘ को वापस नहीं लौट आएगा।
‘B’चोरी का दोषी है ।

धारा 378 महत्वपूर्ण वाद – प्यारेलाल बनाम राज्य , (1963)2 C R.L.J 178(S.C) इस वाद में अभियुक्त सरकारी विभाग में अधीक्षक के पद पर कार्यरत था । कार्यालय से एक फाइल अपने घर लाया और उसने दूसरे को दे दी। जिसने उस फाइल में से कुछ पन्ने निकालकर अन्य पन्ने लगा दिए ,बाद मे अभियुक्त ने कार्यालय में रख दिया। अभियुक्त को ‘चोरी’ के लिए दोषसिद्ध किया गया।

के .एन. मेहरा बनाम राजस्थान राज्य A.I.R 1957 S.C 386
इस वाद में अभियुक्त ने भारतीय वायुसेना का एक वायुयान अनाधिकृत रूप से उड़ान भरने के लिए लिया था । कोर्ट ने अभीनिर्धारित किया कि अभियुक्त चोरी के अपराध के लिए दायी है।

धारा 379 चोरी के लिए दंड- 3 वर्ष का कारावास, जुर्माना या दोनों