प्राइवेट प्रतिरक्षा
IQBAL
NEW DELHI:-प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रक्षा प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार दिया जाना ज़रूरी है जिससे यह अधिकार व्यक्ति विशेष को स्वयं को या अपनी किसी संपत्ति के विरुद्ध हो रहे या हो सकने वाले अपराध को रोकने में मदद करता है। यह अधिकार, स्व संरक्षण (self-preservation) के सिद्धांत पर आधारित है। दण्ड संहिता की धारा 96 कोई बात अपराध नहीं जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में की जाती है |
ज्यूरिस्ट हुदा ने अपनी पुस्तक ” The principal of law of crime ” page no. 382 में यह लिखित है कि ” प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को प्रत्येक विधि प्रणाली में मान्यता प्रदान की गयी है कोई भी राज्य चाहे कितना ही विशाल क्यों ना हो उसके पास सारे साधन क्यों ना हों प्रत्येक परिस्थिति में सुरक्षा प्रदान करने में समर्थ नहीं हो सकता है ऐसी ही परिस्थिति में राज्य अपनी प्रजा को यह अधिकार देती है कि वह विधि को अपने हाथ में ले और अपनी रक्षा ख़ुद करें “
हमारे आसपास मौजूद पुलिस व्यवस्था, अपराध को रोकने सक्षम है मगर यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक पुलिसकर्मी तैनात किया जाए, जिससे किसी भी प्रकार के अपराध होने से पहले उसे रोका जा सके। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह स्वयं को या किसी संपत्ति के बचाव के लिए, प्राइवेट प्रतिरक्षा अधिकार का इस्तेमाल कर सके |
दूसरे शब्दों में, जहां एक नागरिक को उसकी जान या उसकी संपत्ति को एक खतरे का सामना कर रहा है और राज्य मशीनरी से तत्काल सहायता आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकती है, तो नागरिक को स्वयं की और अपनी संपत्ति की रक्षा करने का हक है। ऐसा होने के नाते, यह प्राइवेट प्रतिरक्षा के सिद्धांत के लिए एक आवश्यक कोरोलरी है कि जिस नागरिक ने खुद का या अपनी संपत्ति का बचाव किया है,वह उस अधिकार का उपयोग करने का अधिकार रखता है प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को उपयोग करने के लिये प्राइवेट प्रतिरक्षा के सिद्धांत कि सीमाएं हैं :-
• कार्य आत्मरक्षा ना होकर अपराध तो प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं मिलेगा (आर.बनाम डेडली, स्टीफ़न [1884] लार्ड कॉलरिज
• यह आक्रमक को नहीं मिलता है अर्थात अपराधी को नहीं मिलता है
उत्तरप्रदेश बनाम पुसू [1983 SC.] इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि जो व्यक्ति स्वत: अपने ऊपर आक्रमण को आमंत्रित करता है अपने आक्रमक प्रहार के कारण वह व्यक्ति प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने का हक़ नहीं है |
आत्मरक्षा का अधिकार बदला लेने के लिये नहीं है :–
राजेश कुमार बनाम धर्मवीर [1997] :– इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आत्मरक्षा के अधिकार का दावा केवल विधिविरुद्ध आक्रमण को विफल करने हेतु किया जा सकता है |
• पीछे हटने का कर्तव्य :-
योगेंद्र मुरारी जी बनाम गुजरात [1980 SC.] जस्टिस सरकारिया
जस्टिस सरकारिया ने यह कहा कि पहले आक्रमण से पीछे हटकर बचने की कोशिश करनी चाहिए अन्यथा प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का फायदा नहीं मिलेगा |
निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कभी भी प्रतिशोधी या दुर्भावनापूर्ण रूप से नहीं होना चाहिए। प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग खतरे से बचने के लिए है न कि खतरे को बुलाने के लिए या बेवजह खतरे को बढ़ाने या बदला लेने के लिए।
भारत में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार दंड संहिता की धारा 96 से 106 में प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को कानून की शक्ल दी गयी है।
धारा 96- प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार में की गयी कोई भी बात अपराध नहीं है,
धारा 97 के अंतर्गत यह कहा गया है कि यह अधिकार मानव शरीर एवं संपत्ति के बचाव में उपयोग किया जा सकता है।
धारा 98 के अंतर्गत, एक विकृत-चित्त के व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपयोग किया जा सकता है। यह धारा, उन व्यक्तियों के कार्यों के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार देती है, जो व्यक्ति स्वयं आपराधिक दायित्व से मुक्त हैं।
धारा 99, उन दशाओं की बात करती है जहाँ पर प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपलब्ध नहीं है। यह धारा इस अधिकार की सीमाओं की बात करती है।
धारा 100 शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार मृत्यु कारित करने तक कब होता है |
धारा 101 कब ऐसे अधिकार का मृत्यु से भिन्न कोई अन्य अपहानि कारित करने तक का होता है |
धारा 102 शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब शुरू होता है और कब ख़त्म होता है |
धारा 103 कब सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक होता है |
धारा 104 कब सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित से भिन्न कोई अन्य अपहानि कारित करने का होता है |
धारा 105 सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब शुरू होता है और कब ख़त्म होता है |
धारा 106 घातक हमले के विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने का जोखिम है |
यह लेख प्राइवेट प्रतिरक्षा पर अधूरा है लेखक के द्वारा प्राइवेट प्रतिरक्षा के अगले लेख में विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी |