भारतीय दंड संहिता 1860 भाग एक धारा 1 से 5

SAJMA ALI 

NE W DELHI :-भारतीय दंड संहिता 1860,किसी अपराध पर दंड दिया जाना व न्याय व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है भारत की दंड व्यवस्था मुख्यता ब्रिटिश दंड विधि पर निर्धारित है
वर्तमान समय में जो दंड व्यवस्था भारत में लागू है इसका प्रथम प्रारूप विधि आयोग ने 1833 में लॉर्ड मैकॉले के द्वारा प्रस्तुत किया गया जब भारत ब्रिटिश प्रशासित राज्य था तब राज्यों में शासन एवं दंड की अलग-अलग व्यवस्था थी इस भिन्नता को समाप्त करने के लिए सभी जगह एक समान दण्ड संहिता लागू करने के लिए ब्रिटेन की संसद में संहिता के संहिताकरण का प्रस्ताव लाया गया
लॉर्ड मैकॉले रोड के इस प्रस्ताव से प्रभावित होकर ब्रिटेन की संसद ने 1834 में भारतीय विधि आयोग का गठन किया इस विधि आयोग का अध्यक्ष लॉर्ड मैकॉले को चुना गया

इस विधि आयोग को सांसद के द्वारा निम्न कार्य सौपें गए

(1)न्यायालय के क्षेत्राधिकार शक्ति तथा नियमों का अध्ययन एवं अन्वेषण करना
(2)ब्रिटिश भारत में जो विधियां लागू है उनका अध्ययन करना
(3) पुलिस कार्य एवं उनकी शक्तियों का अध्ययन करना

प्रथम विधि आयोग की रिपोर्ट को 14 अक्टूबर 1837 को गवर्नर को प्रेषित किया गया इस रिपोर्ट द्वारा भारत में कार्यरत न्यायाधीशों के अध्ययन की समीक्षा को विस्तार से पेश किया गया
26 अप्रैल 1845 द्वितीय विधि आयोग का गठन किया गया प्रथम विधि आयोग की रिपोर्ट और जो द्वितीय विधि आयोग की रिपोर्ट को विधान परिषद के समक्ष 1856में रखा गया

इसके प्रारूप को 6 अक्टूबर 1860 में विधान मंडल द्वारा पारित किया गया
यह भारतीय दंड संहिता एक जनवरी 1862 से समस्त भारत में लागू हो गई वर्तमान समय में भी भारतीय दंड संहिता भारत में प्रभावशाली है भारतीय दंड संहिता 1 अक्टूबर 1863 से मुख्य रूप से प्रवर्तन में आई वर्तमान समय में भारतीय दंड संहिता संपूर्ण भारत पर लागू होती है जिसमें जम्मू एवं कश्मीर भी शामिल है मगर अभी कुछ अपवाद है जो राज्य सरकार की शक्तियों के अधीन है जम्मू कश्मीर राज्य से 5 अगस्त 2019 को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया है जो संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत आता था

प्रस्तावना
”यत: भारत हेतु एक साधारण दंड संहिता का उपबंध करना समाचीन है अत: निम्नलिखित रूप से अधिनियमित की जाती है”

भारतीय दंड संहिता में कुल 23 अध्याय एवं 511 धाराएं हैं

दंड संहिता संपूर्ण नहीं है दंड संहिता से पूर्व दाण्डिक मामलों के निपटारे के लिए मुस्लिम अपराधिक न्याय प्रशासन न्याय व्यवस्था मानी जाती थी

धारा 1: – कोड नाम और प्रवर्तन विस्तार
धारा 1 के अनुसार, इसे संहिता को भारतीय दंड संहिता के नाम से जाना जाएगा। यह संहिता पूरे भारत में समान रूप से लागू है। जम्मू और कश्मीर को पूरे भारत में शामिल किया गया है , लेकिन 5 अगस्त 2019 विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो जाने के बाद कुछ अपवादों को छोड़ कर भारत में शामिल माना जाएगा .

धारा 2 :- भारतीय दंड संहिता की धारा 2 संपूर्ण भारत प्रवर्तन से संबंधित है यह धारा कहती है कि भारत के भीतर कहीं भी अगर अपराध किया जाता है तो संहिता के अधीन अपराधी दंड का भागी होगा

भारतीय क्षेत्र में अपराध करने वाला नागरिक हो या अनागरिक दोनों दंड के भागी होंगे
यह संहिता तभी प्रभावशाली मानी जाएगी जब अपराध भारत के सीमा क्षेत्र के अंदर किया गया है

भारतीय दंड संहिता बिना किसी पद, जाति, वंश के भेदभाव के सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होती है परंतु निम्न व्यक्तियों को इस संहिता से अलग किया गया है

  • राष्ट्रपति
  • राज्यपाल
  • प्रधानमंत्री
  • विदेशी राज्य का मुखिया
  • विदेशी शत्रु
  • विदेशी सेना
  • राजपूत
  • युद्ध के अपराधी

धारा 3 :- यदि कोई अपराध भारतीय विधि में दण्डनीये है तो वह अपराध यदि भारत के बाहर भी किया जाता है तो वह भारतीय विधि के अनुसार अनुसार दंडनीय माना जाएगा

भारतीय दंड संहिता धारा 3 के तीन मुख्य तत्व

  • कोई भारतीय विधि हो
  • ऐसी भारतीय विधि भारत से बाहर किए गए अपराध से संबंधित हो
  • अभियुक्त भारत से बाहर किए गए अपराध के लिए विचारण के लिए होगा

धारा 4 :- भारतीय दंड संहिता की धारा 4 का मूल उद्देश्य भारतीय नागरिक द्वारा किसी अन्य देश में अपराध किया जाता है तो इस संहिता के अधीन दण्ड का भागी होगा

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 के भारत के बाहर किए गए अपराधों से संबंधित है

दृष्टांत

(क) जो भारत का नागरिक है युगांडा में हत्या करता है भारत के किसी स्थान में जहां वह पाया जाए हत्या के विचारित एवं दोषसिद्ध किया जा सकता है

धारा 5 यह उपबन्धित करती है कि इस संहिता की कोई कोई भी बात भारत सरकार की सेवा में लगे अधिकारियों सैनिक, नौ सैनिक, वायु सैनिक द्वारा विद्रोह और अभित्यजन को दंडित करने वाले किसी अधिनियम के ऊपर या किसी विशेष स्थानीय प्रभावित नहीं करेगीl