संविधान संशोधन
SAJMA ALI
NEW DELHI :- संविधान में संशोधन ,संविधान के भाग XX के अनुच्छेद 368 में सांसद को संविधान में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है भारत का संविधान ना तो कठोर है ना लचीला जबकि यह दोनों का मिश्रण है
उच्चतम न्यायालय केशव नन्द भारती मामले 1973 के द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि संविधान की उन व्यवस्थाओं को संशोधित नहीं किया जा सकता है जो संविधान के मूल ढांचे से संबंधित है
संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान संशोधन तीन प्रकार से हो सकता है
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधान मंडलों संतुष्टि द्वारा
साधारण विधि द्वारा :-
संसद के साधारण बहुमत द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है संविधान के अनेक उपबंध संसद के साधारण से संशोधित किया जा सकते है ये व्यवस्था अनुच्छेद 368 की सीमा से बाहर है
इन व्यवस्थाओं में शामिल हैं
जैसे-
उपस्थित और मतदान के सदस्यों का बहुमत
उपस्थिति 300
मतदान 150
साधारण बहुमत =150 /2 +1 =76
- नए राज्यों का प्रवेश
- संसद में गणपूर्ति
- विधान परिषद का निर्माण /समाप्ति
- संसद सदस्य के वेतन व भत्ते
- नए राज्यों का निर्माण और नामों का बदलाव
- II अनुसूची राष्ट्रपति राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष न्यायाधीश के लिए परिलब्धियां आदि
- संसद में प्रक्रिया नियम / सदस्यों के विशेषाधिकार
- संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग
- राज्य भाषा का प्रयोग
- नागरिकता की प्राप्ति /समाप्ति
- केंद्र शासित प्रदेश
इसके अतिरिक्त अन्य व्यवस्थाएं भी शामिल है
विशेष बहुमत द्वारा :-
संविधान के ज़्यादातर उपबंधों का संशोधन संसद के विशेष बहुमत द्वारा किया जाता है अर्थात प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों का बहुमत और प्रत्येक सदन के उपस्थित मतदान के सदस्यों के 2/3 का बहुमत
545 /2/3= 363
इस तरह संशोधन व्यवस्था में शामिल है –
- मूल अधिकार (अनुच्छेद 12-32)
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36 -51)
- महाभियोग आदि ( अनुच्छेद 61)
संसद के विशेष बहुमत एवं आधे राज्य विधान मंडल के संतुष्टि द्वारा :-
संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों के विशेष राज्य के कुल विधान मंडलों में से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है इसके द्वारा संशोधन के कुछ विषय निम्नलिखित हैं
- राष्ट्रपति का निर्वाचन
- राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति
- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
- केंद्र शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय
- संघीय न्यायपालिका
- सातवीं अनुसूची का कोई विषय
- संसद के राज्यों का प्रतिनिधित्व
- संशोधन से संबंधित उपबंध
- संघ /राज्यों में विधायी संबंध इत्यादि
संशोधन की प्रक्रिया
यह प्रक्रिया 8 चरणों में पूर्ण होती है
- संविधान के संशोधन का आरम्भ संसद के किसी भी सदन में किया जा सकता है
- विधेयक को किसी मंत्री या गैर सरकारी सदस्य सरकारी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है इसके लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक नहीं है
- विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित कराना जरूरी है
- दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कराने का प्रावधान नहीं है
- यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे आधे राज्यों के विधान मंडलों में से सामान्य बहुमत से पारित होना चाहिए
- संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राज्य विधानमंडल की संतुष्टि के बाद जहां जरूरी हो राष्ट्रपति के पास सहमति के लिए भेजा जाता है
- राष्ट्रपति विधेयक को सहमती देंगें / न ही वह पुनर्विचार के लिए भेज सकते हैं और न ही अपने पास रख सकते हैं
- राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है