साक्ष्य
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NEW DELHI :-साक्ष्य शब्द को अंग्रेजी भाषा के evidence जिसे लैटिन शब्द एविडेयर से लिया गया है जिसका अर्थ है स्पष्ट रूप से दर्शित करना स्पष्ट रूप से पता चलना अभिनिश्चय और साबित करना साक्ष्य शब्द को साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है बल्कि उन चीजों को बताया गया है जो साक्ष्य शब्द में सम्मिलित की गई है
टेलर के अनुसार साक्ष्य के अंतर्गत बहस को छोड़कर वे सभी विधिक साधन आते हैं जो निर्णयक तथ्यों की सत्यता को साबित या ना साबित करते हैं
ब्लैक स्टोन के अनुसार ,साक्ष्य विवाद्यक तथ्यों की सत्यता को वादी या प्रतिवादी के पक्ष में स्पष्ट करना अभिनिश्चित करना है
सामान्यता साक्ष्य शब्द का अर्थ ऐसी वस्तु या कोई वस्तु की दशा से है जिसे किसी वाद ग्रस्त तथ्य को साबित या अभिनिश्चित किया जाता है ऐसी कोई भी वस्तु या वस्तु की दशा की जो न्यायालय के सामने तथ्यों को स्पष्ट कर सके वह साक्ष्य है जैसे जब यह प्रश्न हो कि आगजनी के पूर्व क्या कोई विस्फोटक हुआ था तब विस्फोटक का धमाका तथा इसकी चमक इसके साक्ष्य होंगे जिन व्यक्तियों ने इस चमक को देखा इस धमाके की आवाज को सुना इसका साक्ष्य दे सकते हैं उनके द्वारा साक्षी दिया जा सकेगा
जैसे किसी तथ्य का रिकॉर्ड भी घटना का साक्ष्य होगा जहां किसी संविदा के अंतर्गत माल के परिधान का तथ्य किसी दस्तावेज पर लिखा गया है जैसे परिधान रजिस्टर दस्तावेज परिदान के तथ्य का साक्ष्य होगा
साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में साक्ष्य की निम्न परिभाषा दी गई है
वे सभी कथन जिनके जंचाधीन तथ्यों के विषयों के संबंध में न्यायालय अपने सामने साक्ष्यियों द्वारा यह जाने की अनुज्ञा देता है अपेक्षा करता है
ऐसे साक्ष्य मौखिक साक्ष्य है
न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई सभी दस्तावेज जिनमें इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख शामिल है )ऐसे साक्ष्य दस्तावेजी साक्ष्य है
(2) any mental condition of which any person is conscious. Illustrations
स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम प्रफुल्ल पटेल के वाद में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को दस्तावेज साक्ष्य माना गया है
आर.एम. मलकानी स्टेट ऑफ महाराष्ट्र 1973 सुप्रीम कोर्ट, के वाद में कहा कि जब कोई ऐसी बात चल रही हो जो किसी संववहार का भाग होने के नाते सुसंगत है यदि ऐसी बातचीत को उसी समय रिकॉर्ड कर लिया जाता है तब ऐसी टेप रिकॉर्ड सुसंगत होगी
जियाउद्दीन बुरहानुद्दीन बुखारी बनाम ब्रजमोहन रामदास मेहरा और अन्य 1976 एस.एस.सी के वाद में अभिनिर्धारित किया गया कि भाषणों का टेप रिपोर्ट अधिनियम की धारा 3 में परिभाषित दस्तावेज है ऐसे साक्ष्य ग्राहा करने के लिए न्यायालय ने निम्न तीन शर्तों को आरोपित किया है जो निम्न हैं
(i)कथन करने वाले व्यक्ति को आवाज़ को रिकॉर्ड करने वाले व्यक्ति द्वारा उसके पहचान के द्वारा या उसके पहचान के व्यक्ति के द्वारा पूर्ण रूप से पहचान लिया गया हो
(ii)रिकॉर्ड किलप कि सत्यता का निर्धारण करने वाले व्यक्ति द्वारा साबित कर दिया गया हो एवं साक्ष्य संतोषजनक पर्याप्त, परिस्थितिजन्य होना अनिवार्य है एवं साक्ष्य से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए
(iii)रिकॉर्ड किये गये विषय वस्तु साक्ष्य अधिनियम में स्थान प्राप्त सुसंगत के नियमों के अनुसार होना दर्शित कर दिया गया हो
साक्ष्य के प्रकार
(A)मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य
(B)वास्तविक एवं व्यक्तिगत साक्ष्य
(C)प्राथमिक एवं द्वितीयक साक्ष्य
(D)प्रत्यक्ष एवं परिस्थितिक साक्ष्य
(E)मूल एवं अनुश्रित साक्ष्य
(A)मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में परिभाषित शब्द में केवल दो साक्ष्य आते हैं
साक्षियों के कथन जिसे वे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर मुख से व्यक्त किया जाता है मौखिक साक्ष्य है
वे समस्त दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष मौखिक साक्ष्य के बारे में बताते हैं दस्तावेजी साक्ष्य हैं
(B) वास्तविक एवं व्यक्तिगत साक्ष्य
वास्तविक साक्ष्य के अंतर्गत वह साक्ष्य आते है जो न्यायालय के निर्णय और विश्वास के लिए प्रत्यक्ष रूप से पेश किया जाता है जो इंद्रियों द्वारा बोधगम्य और दस्तावेजों से भिन्न अन्य वस्तुओं को न्यायालय के समक्ष धारा 60 के अंतर्गत पेश किया जाता है जैसे हत्या में प्रयुक्त पिस्तौल या ख़ून से सने कपड़े, चोरी की हुई वस्तु
व्यक्तिगत साक्ष्य साक्षियों के लिखित और मौखिक दोनों साक्ष्य आते हैं
(C)प्राथमिक एवं द्वितीयक साक्ष्य
प्राथमिक साक्ष्य मूल दस्तावेज होता है जो न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है यह सर्वोत्तम साक्ष्य होता है प्राथमिक साक्षी की परिभाषा धारा 60 में दी गई है
द्वितीयक साक्ष्य को प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में दिया जा सकता है यह निम्नतर कोटि का साक्ष्य कहलाता है इसकी परिभाषा धारा 63 एवं धारा 65 में बताया गया है कि किन अवस्थाओं में एक से दिया जा सकता है
(D)प्रत्यक्ष एवं परिस्थितिक साक्ष्य
किसी मामले से संबंधित घटना को आंखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाता है
ऐसे साक्ष्य जो सीधे विवादात्मक तथ्य को साबित नहीं करते हैं बल्कि परिस्थितियों द्वारा यह प्रकट करते हैं कि विवादात्मक तथ्य सही है तो उन्हें परिस्थितिजन्य साक्ष्य कहा जाता है परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संबंध में एक सूत्र है साक्षी झूठ बोल सकता है किन्तु परिस्थितियां नहीं, जहां अभियुक्त के दोषी होने के संबंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य का अभाव है और इसकी दोषिता का निर्धारण परिस्थितिक साक्ष्य के आधार पर किया जाता है वहां उच्चतम न्यायालय ने शरद विरधी चंद्र बनाम महाराष्ट्र राज्य ए.आई.आर 1984 (1622) के वाद में परिस्थितिक को समझाने के लिए 5 गोल्डन सिद्धांत के दिये
(i)परिस्थितियां पूरी तरह निश्चायक होनी चाहिए
(ii)सारी परिस्थितियां अभियुक्त के अपराध की ओर संकेत कर रही हों
(iii)दोषसिद्धि को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि परिस्थितियां पूर्ण हो जो भी परिस्थितियां हों वो परिकल्पना से परे होनी चाहिए
(iv)सारे साक्ष्य की कड़ियां एक दूसरे से इस तरह जुड़ी हो कि कहीं कोई शक ना हो
(v)परिस्थितियां पूरी तरह से साबित होनी चाहिए
धर्मदेव यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2014 के वाद में कहा गया कि केवल अंतिम बार साथ देखे जाने पर दोषसिद्ध भी नहीं की जा सकती है पहचान करने में डीएनए की प्रमुख भूमिका रहती है इसका प्रयोग काफी समय से चलता आ रहा है जो न्याय प्रणाली के लिए उपयोगी है अतः इस पर संदेह व्यक्त नहीं किया जा सकता है
(E) मूल एवं अनुश्रित साक्ष्य
मूल साक्ष्य वह साक्ष्य है जिसमें साक्षी स्वयं देखी या सुनी हुई बातों के बारे में साक्ष्य देता है
साक्ष्य अनुश्रित वह साक्ष्य होता है जिसमें साक्षी अपनी देखी हुई या स्वयं सुनी हुई नहीं बल्कि दूसरे व्यक्ति के माध्यम से सुनी हुई बातों के आधार पर साक्ष्य देता है