हिंदू विधि के स्रोत
हिंदू विधि के स्रोत
By IQBAL
New Delhi :-हिंदू विधि पुराण,वेद, शास्त्र के रूप में मिली थी हिंदू विधि पूरी तरह धर्म से जुड़ी विधि थी हिंदू विधि के सोर्स को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
- प्राथमिक स्रोत
- द्वितीयक स्रोत
1.प्राथमिक स्रोत
- श्रुति
- स्मृति
- टिका
- रूढ़ि एवं प्रथा
2.द्वितीयक स्रोत
- साम्य विवेक
- विधायन
- पूर्व निर्णय
1.प्राथमिक स्रोत
- श्रुति
श्रुति का सामान्य भाषा में अर्थ सुना गया या हुआ होता है यह स्रोत एवं ईश्वर या ऋषि-मुनियों के द्वारा प्रदत्त किया हुआ माना जाता है

श्रुति में चार वेद एवं उपनिषद् हैं
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
- ऋग्वेद 10 मंडल व 1028 सूक्त सबसे प्राचीन माना जाता है
- यजुर्वेद यज्ञ नियम व कर्मकांड इसके 2 भाग कृष्ण यजुर्वेद व शुकुल वेद है
- सामवेद
- अथर्ववेद अंतिम देश माना जाता है
- वेदांत का स्थान वेदों के बाद आता है वेदांत संख्या में छह हैं
- कल्प
- व्याकरण
- छंद
- शिक्षा
- ज्योतिषी
- निरुक्त
2.स्मृति
स्मृति का अर्थ है जो याद रखा गया हो या जो स्मरणीय किया गया हो होता है, श्रुति के बाद स्मृति को प्रमाणिकता दी जाती है
धर्म सूत्र एवं धर्म शास्त्र धर्मसूत्र
धर्मसूत्र के अनुसार ,इस युग की शुरुआत 800 से 200 ईसा पूर्व मानी जाती है गद्य की रचना
मनुष्य के कर्तव्यों की विवेचना
विष्णु
रचना
विष्णु स्मृति
गद्य पद्य
विष्णु स्मृति के विषय
- सिविल
- दंडक
- दत्तक
- विवाह
- उत्तराधिकार
बोधायन
यह कृष्ण यजुर्वेद शाखा से संबंधित
- विवाह
- उत्तराधिकार
गौतम
सबसे पुराना धर्म सूत्र
- दाता
- विभाजन
- स्त्रीधन
- उत्तराधिकार
मुख्य धर्मशास्त्र
मनु
- मनु सर्वोत्कृष्ट स्मृति मनु के रचयिता के बारे में अनेक मतभेद है
- यह इससे 200 रचित मानी जाती है
- इसमें 2694 श्लोक 12 अध्याय में विभाजित है
- मनु टीका इसकी एक टीका है
यज्ञवल्कय
- यज्ञवल्कय यह मनुस्मृति पर आधारित है
- इसको पहली इसवीं में रचित माना जाता है
- इसमें विधि को सर्वोच्च स्थान पर रखा गया है राजा भी विधि के अधीनस्थ आता है
- इस स्मृति पर निम्न टिकाए रचित की गई हैं
विज्ञान ईश्वर द्वारा
अपरार्क द्वारा
शुल्पणी द्वारा
मुख्य टीका
- मिताक्षरा
मिताक्षरा के रचनाकार विज्ञानेश्वर मूल रूप से आंध्र प्रदेश के निवासी थे यह टीका समस्त देश में प्रचलित एवं प्रसिद्ध है यह सिर्फ पश्चिम बंगाल को छोड़कर समस्त देश में प्रसिद्ध है
मिताक्षरा पर भी कई भाष्य लिखे गए हैं जैसे
सुबोधिनी (विश्वेश्वर द्वारा रचित )
प्रमिताक्षरा (नंद पंडित द्वारा रचित )
- दयाभाग
दयाभाग इसके रचयिता जीमुत वाहन हैं यह बंगाल का सर्वाधिक प्रमाणिक भाष्य है इसमें मुख्य विषय वर्णित हैं
- स्त्रीधन
- दाय
- उत्तराधिकार
नारद
यह मनु एवं यज्ञवल्कय रूप पर आधारित है जो अपने पूर्ण रूप में है
3.टीका
सामान्य अर्थ में कहा जाए तो टिकाए स्मृति का संशोधित रूप होती है समय के साथ स्मृतियों में परिवर्तन की जरूरत हुई इसी परिवर्तन एवं मतभेद को खत्म करने के लिए टीकायां अस्तित्व में आई थी टीकायां हिंदू विधि की नवीन विधि सोर्सेस मानी जाती है
टीकायाँ एवं जिन्होंने स्मृतियों को गांवों के रूप में स्थापित किया स्मृति
मनुस्मृति
- मनु टीका ( गोविंदराज)
- मनुभाषा ( मेघातिथि )
- मुक्तलवी (कुलूक भट्ट)
यज्ञवल्कय
- बालिकीज (विश्वरूप द्वारा )
- मिताक्षरा ( विज्ञानेश्वर द्वारा )
- वीर मित्रोदाय (मित्र मिश्र द्वारा)
- दयाभाग (जीमुत वाहन द्वारा )
- व्यवहार मायमुख (नीलकंठ द्वारा)
4.रूढ़ि एवं प्रथाएं
रूढ़ि एवं प्रथाएं लगातार अस्तित्व में बने रहने के कारण हिन्दू विधि का सोर्सेस बन गई
रूढ़ि विशेषता
प्राचीनता – रूढ़ियों की प्राचीनता ऐसी रूढ़ियाँ जो अपनी इतनी ज्यादा पुरानी है कि मानव स्मृति से परी की मानी जाती है न्यायालय द्वारा रूढ़ियों को 100 वर्ष पुराना माना जाता है लेकिन यह नियम अपनाना जरूरी नहीं है
निरंतरता – रूढ़ियों को निरंतर अपनाना जरूरी माना जाता है यदि कोई रूढि निरंतरता में नहीं है तो इसका प्राचीन होना व्यर्थ साबित हो जाता है
संदेह से होना – रूढ़ि को संदेह परे होना जरूरी है कि वे रूढ़ि संदेह से परे होनी चाहिए क्यूंकि और उस रूढ़ि पर पालन करने वाले ने उसका पालन उसी तरह बार-बार किया हो जिस तरह से वे पहले से पालन होता चला आ रहा है
युक्तियुक्त – युक्तियुक्त रूढ़ि का युक्तियुक्त होना आवश्यक माना जाता है जो मनुष्य के विवेक पर आधारित होती है
अनैतिक – अनैतिक ना होना जरूरी है कि रूढ़ि अनैतिक नहीं होनी चाहिए यदि कोई रूढ़ि अनैतिक है तो वह समय के पहले खत्म हो जाती है ऐसी रूढ़ि शून्य मानी जाती है
विधि विरुद्ध ना हो – रूढ़ि ऐसी हो जो विधि विरुद्ध ना हो, यदि कोई भी रूढ़ि विधि विरुद्ध होती है तो संविधान के द्वारा ऐसी रूढ़ि को शून्य घोषित कर दिया जाता है
प्रथाएँ
स्थानीय प्रथा – प्रथाएं जो कि किसी स्थान विशेष हेतु होती है स्थानीय प्रथाएँ हैं
सामूहिक प्रथाएँ – ऐसी प्रथाएँ जो समूह एक संप्रदाय वर्ग में अपनाई जाती हैं
कौटोम्बिक प्रथाएँ – किसी विशिष्ट परिवार में लागू होने वाली प्रथाएं परिवारिक हैं
2.द्वितीयक स्रोत
- साम्य एवं विवेक
- विधायन
- पूर्व निर्णय
साम्य एवं विवेक
साम्य एवं विवेक हिंदू विधि का स्रोत माना जाता है विवेक के लिए यहाँ न्यायाधीश का विवेक माना जाता है यदि किसी मामले पर विधि उपबंध ना करती हो तो यह न्यायाधीश के विवेक पर आधारित है कि वह नैतिकता को देखते हुए किसी मुख्य बिंदु तक पहुंच कर अच्छा निर्णय दे |
विधायन
विधान मंडल द्वारा पारित अधिनियम विधि का प्रमुख स्रोत बन गई है इस संबंध में पारित निम्नलिखित महत्वपूर्ण अधिनियम यह है
- कास्ट डिसेबिलिटी रिमूवल एक्ट 1850
- भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956
- हिंदू विवाह अधिनियम 1955
- हिंदू दत्तक ग्रहण का भरण पोषण अधिनियम 1956
- हिंदू अव्यस्कता व संरक्षण अधिनियम 1956
- हिंदू विधवा पुनर्विवाह एक्ट 1956
- विशेष विवाह अधिनियम 1872
- संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925
- आर्य विवाह वैधिकरण अधिनियम 1937
- बाल विवाह अवरोध अधिनियम 1978
- अभिभावक व संरक्षकता अधिनियम 1890
- विशेष विवाह अधिनियम 1954
- सर्वोच्च विधायन संसद को माना जाता है
पूर्व निर्णय
पूर्व निर्णय विधि का प्रमुख सोर्स माने जाते हैं विभिन्न निर्णय एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में निर्णय देने मुख्य भूमिका निभाते हैं
- न्यायिक निर्णय प्रिवी काउंसिल तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय भारत के सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी प्रभाव रखते हैं भले ही एक उच्च न्यायालय दूसरे उच्च न्यायालय को निर्णय को नहीं माने
- सर्वोच्च न्यायालय को कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड भारतीय संविधान की आर्टिकल 29 के अंतर्गत माना जाता है जबकि प्रिवी काउंसिल को 1949 में निरसित कर दिया गया था
भारतीय संविधान की आर्टिकल 141 के अंतर्गत सभी न्यायिक