हिंदू विधि
हिंदू विधि की प्रस्तावना
हिंदू विधि दर्शन शास्त्र एवं धर्म शास्त्र से एक गहरा रिश्ता रखती है जो समाजशास्त्री संतों की देन है परंतु हिंदी विधि शास्त्री विधि को संप्रभु की देन नहीं मानते हैं
जॉन डी मैन हिंदू विधि की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि स्मृतियों की विधि है जैसे कि संस्कृत टिकाऊ और निबंधों में इसकी व्याख्या की गई है जिसे रिवाज द्वारा संशोधित और परिवर्तित किया गया और जिसका न्यायालय द्वारा प्रयोग किया गया है
मनु के अनुसार हिंदू विधि के सोर्स
- वेद
- स्मृति
- सदाचार
- अपनों को जो तुष्टिकर हो
मनु के अनुसार,
- दंड प्रजा पर शासन करता है
- दंड ही लोगों की रक्षा करता है
- दंड लोगों के तो जाने पर भी दंड जागता रहता है
- विद्वानों ने दंड को धर्म माना है
हेनरी मैन के अनुसार,
जहां डर है वही शासन किया जा सकता है बिना डर के शासन नहीं किया जा सकता है
हिंदू विधि की सर्वप्रथम विशेषता है कि दंड को ही धर्म के रूप में अपनाया गया है
हिंदू धर्म में विधि को प्रथम स्थान पर रखा जाता है धर्म का आधार स्तंभ विधि को माना जाता है
भगवान कृष्ण ने गीता में कहा,
‘’य: शास्त्र विधि मुत्सरज्या वर्तते कामकरत|
न स सिद्धि मवापनोती न सुख न परांगतिम’’||
हिंदू विधि लेक्स लेसी (स्थानीय विधि) नहीं है जो कोई भी हिंदू जहां भी रहेगा वहां उस पर लागू होगी यह एक व्यक्तिगत विधि है
हिंदू विधि को चार वर्णों में विभाजित किया गया था
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शूद्र
प्रथम को श्रेष्ठ माना जाता था अन्य तीन वर्णों को दोयम दर्जा माना जाता था
मुख्य बिंदु
धर्म परिवर्तन से आने वाले व्यक्ति शूद्र में शामिल होते हैं
श्यामसुंदर बनाम शंकर ए आई आर 1960 में सुर में कहा गया कि हिंदू विधि में दो मत प्रचलन में हैं
ईश्वर द्वारा प्रदत्त
रूढ़ि एवं प्रथाओं से विकसित लेकिन मान्य मत ईश्वरी है
हिंदू कौन हैं
- जिसे लोग हिन्दू के रूप में जानते हैं
- जो उसको हिंदू के रूप में मानते है जो कट्टरवादी उदारवादी मूर्तिपूजक अनीश वरवादी होता है
मुख्य मामला,
- यज्ञपुरुष बनाम मूल दास ए आई आर 1966,
न्यायामूर्ति गजेंद्र गडकर ने कहा कि
- आर्य भारत में सिंधु नदी के मैदान पर आकर बस गए यह पहले सेंधव एवं बाद में हिंदू कहलाए
- वेदों का आदर करना
- बहूदेववाद में विश्वास करना
- पुण्य करके मोक्ष पाना
- श्री भगवानपुर बनाम जगदीश चंद्र बोस 1909 प्रिवी कौंसिल के मामले में निर्धारित किया गया है कि यदि कोई हिंदू अपने हिंदू धर्म से विमुख हो जाता है या कट्टरता पूर्वक धर्म के सिद्धांतों का पालन नहीं करता है वह गौ मांस खाने लगता है तो वह ऐसा करने से वह गैर हिंदू नहीं हो जाएगा गैर हिंदू होने के लिए धर्म परिवर्तन करना जरूरी होता है|
- अब्राहम बनाम अब्राहम 1909 प्रिवी काउंसिल इस मामले में यह व्यवस्था की गई है कि हिंदू जन्म से भी होता है और हिंदू,धर्म परिवर्तन करके भी बनाया जा सकता है|
- पेरूमन बनाम पुन्नास्वामी ए आई आर 1971 SC उच्चतम न्यायालय ने इस वाद में व्यवस्था दी कि यदि किसी व्यक्ति स्वेच्छा से हिंदू धर्म को अंगीकार कर लिया है वह हिंदू धर्म के लोगों द्वारा हिंदू माने जाने लगा है इस दशा में वह हिंदू हो जाता है भले ही उसने धार्मिक अनुष्ठान नहीं किया हो|
- मोहनदास बनाम देवसोम बोर्ड ए आई आर 1975 केरल राज्य में जेदुदास नाम का व्यक्ति था वे मंदिरों में जाकर भक्ति संगीत का कार्य करता था जेदुदास ने न्यायालय में घोषणा पत्र देकर हिंदू धर्म अपनाया था न्यायालय ने कहा कि जेदुदास हिंदू है
हिन्दू विधि किन पर लागू होती है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 के अनुसार निम्न लोगों पर यह अधिनियम लागू होता है
- वह जो जन्मना हिंदू हैं
- धर्म परिवर्तन द्वारा यह हिंदू धर्म में प्रत्यावर्तन द्वारा हिंदू बना हो
- ऐसा ऐसी संतान जिसके माता-पिता दोनों हिंदू हैं यह माना जाएगा कि उनका बच्चा हिंदू है
- यदि पिता ईसाई माता हिंदू है जन्म लेने वाली संतान का लालन-पालन हिंदू परिवार में किया जाता है ऐसी संतान हिंदू मानी जाएगी
- ऐसा कोई भी व्यक्ति जो बौद्ध जैन सिख हो हिंदू माना जाएगा
- ऐसे सभी व्यक्ति जो आदिवासी क्षेत्रों में रहते हो मुस्लिम ईसाई यहूदी ना हो एवं उनका वास क्षेत्र भारत हो एवं उन पर अन्य कोई विधि लागू नहीं होती हो तो ऐसे व्यक्ति हिंदू कहलाएंगे
- धारा 2 की उपधारा (2) के अनुसार किसी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के ऊपर हिंदू विधि लागू नहीं होगी जब तक केंद्र सरकार के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषणा कर दी जाए ऐसा वर्णन संविधान के अनुच्छेद 366 ( 25) ने दिया गया है इसका मुख्य वाद सूरजमणि स्टेला बनाम दुर्गाचरण हसदा है