व्यपहरण एवं अपहरण – एडवोकेट यशिका सोनी
न्यायिक सेवा मुख्य परीक्षा टेस्ट सीरीज टेस्ट 4, एडवोकेट यशिका सोनी जुडीशल अस्पिरेट्स के द्वारा लिखा हुआ उत्तर पढ़ें और कमेंट करें
प्रश्न : व्यपहरण एवं अपहरण के अपराधों के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए
उत्तर: अपहरण एवं व्यपहरण के अपराधों के बारे में भारतीय दंड संहिता 1860 के अध्याय 17 मानव शरीर के प्रति प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय के बारे में बताया गया है जो निम्न प्रकार है
धारा 359 व्यपहरण (kidnaping) व्यपहरण दो किस्म का होता है भारत में से व्यपहरण और विधिपूर्ण संरक्षकता से व्यपहरण
भारतीय दंड संहिता में व्यपहरण को परिभाषित नहीं किया गया है बस इसके दो प्रकार बताए गए हैं हम इसे निम्न प्रकार से समझ सकते हैं
व्यपहरण का शाब्दिक अर्थ है बाल चोरी व्यपहरण दो प्रकार का होता है
- भारत में से व्यपहरण
- विधि पूर्ण संरक्षित का से व्यपहरण
कुछ मामलों में इस इन दोनों प्रकारों में अंतर स्थापित करना दुष्कर होता है उदाहरण के लिए – किसी अवयस्क शिशु का भारत में से किया गया व्यपहरण विधि पूर्ण संरक्षकता में से भी किया गया व्यपहरण है वरन के दोनों प्रकारों को धारा 360 , धारा 361 में विस्तृत रूप से बताया गया है
धारा 365 अपहरण (Abduction)
जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से ले जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है या किन्ही प्रवाचना
पूर्ण उपायों द्वारा प्रेरित करता है उस व्यक्ति का अपहरण करता है यह कहा जाता है इस धारा में अपहरण को परिभाषित किया गया है इस धारा के अंतर्गत अपहरण मूल अपराध नहीं है अपितु एक सहायक कार्य है जो श्वेता दंडनीय नहीं है यह तभी आपराधिक होता है जब इसे किसी अपराधी आशय से किया गया हो,
महत्वपूर्ण वाद नन्नू धीमर 1930 53 इलाहाबाद
1.इस धारा के निम्न अवयव है बलपूर्वक बाध्यता अथवा प्रवाचनापूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरण
2.ऐसी बाध्यता या उत्प्रेरण का उद्देश्य किसी व्यक्ति को किसी स्थान से ले जाने का हो
उपयुक्त प्रकार से हमने अपहरण और व्यपहरण को समझा और धारा 363 में व्यपहरण के दंड का प्रावधान किया गया है जबकि अपहरण का दंड स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है तथा इसे व्यपहरण के मिश्रित करके भिन्न-भिन्न अलग-अलग रूप से अपराध कारित करने के साथ दंडित किया गया है
अपहरण और व्यपहरण में अंतर
1.व्यपहरण अपराध 16 वर्ष से कम आयु के बालक तथा 18 वर्ष से कम आयु की बालिका अथवा किसी विकृत चित व्यक्ति के संबंध में किया जाता है जबकि अपहरण का अपराध किसी भी उम्र के व्यक्ति के साथ किया जाता है
2.व्यपहरण के अंतर्गत किसी व्यक्ति को उसके विधिपूर्ण संरक्षकता से हटाया जाता है अतः बिना संरक्षक के बालक को ले जाना या बहकाना व्यपहरण का अपराध संरचित नहीं करता है जबकि अपहरत् व्यक्ति से संदर्भित होता है अपराध व्यक्ति का किसी की संरक्षकता में होना आवश्यक नहीं है
3.व्यपहरण किसी अवयस्क विकृत चित व्यक्ति के केवल ले जाने या बहकाने मात्र से ही व्यपहरण का अपराध संरचित हो जाता है जबकि अपहरण के अपराध में प्रयोग में लाए गए साधन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ये साधन है बाल पूर्वक बाध्यता अथवा प्रवचनापूर्ण उत्प्रेरण
4.व्यपहरण ले जाए अथवा बहकाए गए व्यक्ति की सम्मति का कोई महत्व नहीं है क्योंकि ऐसे व्यक्ति वे सम्मति देने के लिए सक्षम नहीं है जबकि अपहरण में अपहरत् व्यक्ति की सम्मिति यदि उन्मुक्त तथा स्वैच्छिक थी तो वे अपराध उपार्जित या माफ कर देती है
5.व्यपहरण में व्यपहरणकर्ता के आशय का कोई महत्व नहीं होता किंतु अपहरण के अंतर्गत अपहरणकर्ता का आशय अपराध की संरचना हेतु एक महत्वपूर्ण अवयव है क्योंकि अपहरण अपने आप में कोई अपराध नहीं है यह तभी अपराध है जब इसे किसी विशिष्ट आशय से किया गया हो
6.व्यवहरण कोई अनावृत अपराध नहीं है क्योंकि यह उसी समय पूर्ण हो जाती है जिस समय किसी व्यक्ति की विधिपूर्ण संरक्षता से वंचित किया जाता है जबकि अपहरण का अपराध एक अनावृत या निरंतर चालू रहने वाला अपराध है यह तब तक गतिमान रहता है तब तक अब अपहरत् व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है
7.व्यपहरण का अपराध एक मूल अपराध है जबकि अपहरण अपराध के सहायक कृत्य हैं उदाहरण स्वेता दंडनीय नहीं है यह तभी अपराधिक होता है जब इसे धारा 364 तथा अन्य धाराओं में उल्लेखित किसी एक ऐसे से किया जाता है