कंस्ट्रक्टिव लायबिलिटी
भारतीय दंड संहिता की धारा 34 से 38, धारा 114 धारा 149, 396,460, अनव्यायिक दायित्व से संबंधित है अनव्यायिक दायित्व( कंस्ट्रक्टिव लायबिलिटी )का अपराध तब उत्पन्न होता है जब निर्धारित परिस्थितियों में अभियुक्त में से एक से अधिक द्वारा अपराध कार्य गठित किया जाता है
मध्य प्रदेश राज्य बनाम देशराज 2004 के मामले में कहा गया कि धारा 34 किसी अपराध का गठन नहीं करता मात्र यह अपराधिक दायित्व के सिद्धांत को विहित करती है
सामान्य आशय क्या है
जब किसी कार्य में लगे हुए व्यक्तियों का एक ही आशय होता है तो सामान आशय कहते हैं परंतु जब ऐसे व्यक्तियों ने पहले ही योजना बनाकर एक ही उद्देश्य के लिए कार्य किया हो तो उसे सामान्य आशय कहते हैं धारा 34 के अधीन सामान्य आशय के लिए कार्य से तात्पर्य अपराधिक कार्य से है
संबंधित मामला :- पांडुरंगा एवं अन्य बनाम स्टेट ऑफ हैदराबाद ए.आई.आर. योजना बनाई हो सामान्य आशय वहां उत्पन्न होता है जहां अपराध कर्ताओं ने अपराध करने से पहले योजना बनाई हो सामान्य आशय वहाँ उत्पन्न नहीं होता है जहां बिना योजना बनाएं आपराधिक कार्य किया जाता है अ और ब पर य की हत्या करने का आरोप है अ और ब ने पूर्व नियोजित योजना बना कर हत्या की तो यहां सामान्य आशय उत्पन्न हो जाता है यदि अ और ब के बीच ऐसी कोई भी पूर्व नियोजित योजना नहीं थी तो सामान्य से उत्पन्न नहीं होगा परंतु पूर्व नियोजित योजना की समय सीमा निर्धारित नहीं है जहां घटना घटित हो रही है वहां भी योजना बनाई जा सकती है घटनास्थल पर योजना बनने से संबंधित मुख्य मामला अब्दुल्ला बनाम केरल राज्य ए.आई. आर. 1951 एससी 452 है
सामान्य आशय के लिए पूर्व नियोजित योजना के साथ अपराधियों का दिमाग का मेल होना भी आवश्यक माना जाता है दिमाग का मेल तभी हो सकता है जब अपराधियों ने अपराध करने से पहले सहमति दी हो
धारा 34 क्या है
सामान्य आशय को अग्रसर करने में मूल संहिता में धारा 34 में सामान्य आशय का अर्थ विस्तृत नहीं था 1869 में गणेश सिंह बनाम रामपूजा के मामले को प्रिवी काउंसिल के द्वारा निर्धारित करते समय संहिता में 1870 में जोड़ा गया था
धारा 34 के अनुसार जब कोई अपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सबके सामान्य आशय के अग्रसर करने में किया जाता है तब ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक व्यक्ति उसी प्रकार का दायित्वधीन होगा मानो वह कार्य उसी ने किया हो
धारा 34 एक धारणात्मक उपबंध है सामान्य आशय के अग्रसर करने में आपराधिक कार्य का किया जाना इसका मूल तत्व है साथ ही अपराध के निर्धारण हेतु अभियुक्त की सक्रिय भागीदारी को साबित किया जाना भी आवश्यक माना जाता है
धारा 34 के मुख्य तत्व
- कोई अपराध घटित हुआ
- आपराधिक कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया हो
- आपराधिक कार्य में शामिल प्रत्येक व्यक्ति का सामान्य आशय हो
- सामान्य आशय के अग्रसर करने में कोई अपराधिक कार्य घटित हुआ हो
नोट :- यह धारा कोई ठोस अपराध नहीं बनाती है लेकिन सभी कर्ता को सबूत के नियम के तहत बाधता है सेवा राम बनाम यूपी राज्य 2008 CLJ 802 SC
महत्वपूर्ण मामले
- गणेश सिंह बनाम राम पूजा 1869
- वारेन्द्र कुमार घोष बनाम एम्परर ए•आई•आर• 1945 एस सी• 118
- कृपाल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1954 एस सी
- श्री कांतिया बनाम बंबई राज्य 1955 एससी
- ऋषि देव पांडेय बनाम उत्तर प्रदेश 1955 एससी
- जे•एम• देसाई बनाम बंबई राज्य ए•आई•आर 1960 एस सी 889
धारा 35
किसी व्यक्ति पर तब तक संयुक्त दायित्व का आरोप अधिरोपित नहीं किया जा सकता है जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा साबित नहीं किया जाता है कि उस व्यक्ति को अपराधिक कार्य के बारे में जानकारी थी या उसे करने का आशय था
धारा 36
अंशत: कार्य द्वारा और अंशत: लोप द्वारा कारित परिणाम यदि कोई अपराध अंशत: कार्य द्वारा या अंशत: लोप द्वारा किया जाता है तो उसका परिणाम वैसा ही होगा मानो कि वह केवल कार्य द्वारा या लोप द्वारा किया गया है
उदाहरण के लिए क अपनी पत्नी या को मारता पीटता है और थोड़ा भोजन देता है जिससे वे कमजोर हो जाती है इसी तरह लगातार भी कई महीने तक करता है उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाती है यहाँ क हत्या का दोषी है
धारा 37
किसी अपराध को गठित करने वाले कार्यों में से किसी एक कार्य को करके सहयोग करना किसी अपराध का गठन करने के लिए अनेक कार्य किए जाते हैं तो उन किए गए कार्यों में से कोई भी एक कार्य जो अपराध में सहयोग देने के आशय से किया गया है उसके कर्ता को उस अपराध का गठन करने के लिए उत्तरदायी बनाता है कार्य भी भागीदारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर किया जा सकता है
धारा 38 अपराध कार्य में सम्पकृत व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी होंगे यह धारा सामान्य आशय के सिद्धांत से भिन्न पृथक आशय के सिद्धांत पर कार्य करती है
यह धारा स्पष्ट करती है कि कार्य करने वाले अभियुक्त एक से अधिक होते हैं लेकिन वह सामान्य आशय के अग्रसर करने हेतु कार्य नहीं करते हैं अर्थात उनका कृत्य एक होने पर भी उसे कार्य करने का आशय भिन्न भिन्न हो सकता है Read English
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