गंभीर और अचानक प्रकोपन  से संबंधित कानून – एडवोकेट मीनू चौधरी

न्यायिक सेवा मुख्य परीक्षा टेस्ट सीरीज टेस्ट 7, एडवोकेट मीनू चौधरी
जुडीशल अस्पिरेट्स के द्वारा लिखा हुआ उत्तर पढ़ें और कमेंट करें

[ गंभीर और अचानक प्रकोपन  से संबंधित कानून ]

प्रश्न 1. गंभीर और अचानक प्रकोपन  से संबंधित भारतीय दंड संहिता में समाविष्ट कानून की विवेचना कीजिए और बताइए कि किस सीमा तक यह अभियुक्त की हत्या के लिए दायित्व को कम कर देता है। अपने उत्तर में महत्वपूर्ण वादों को निर्दिष्ट कीजिए।
उत्तर : – गंभीर और अचानक प्रकोपन भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 300 में परिभाषित हत्या के 5 अपवादों में से पहला अपवाद है

अपवाद 1- अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराध उस समय गंभीर और अचानक प्रकोपन से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो, जिसने वे प्रकोपन दिया या उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करें या अन्य किसी व्यक्ति की मृत्यु या दुर्घटना वश कारित करें

 यह अपवाद निम्नलिखित परंतुको के अधीन है-

(1).एक प्रकोपन किसी व्यक्ति का वध या अपहानि करने के लिए अपराधी के रूप में इप्सित (अभिलाष) इतना हो या स्वेच्छा प्रकोपित ना हो

(2).प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा ना दिया गया वह जो विधि के पालन में लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधि पूर्ण प्रयोग में की गई हो

(3).प्रकोपन किसी ऐसी बात द्वारा ना दिया गया हो जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधि पूर्ण प्रयोग में की गई हो

स्पष्टीकरण : प्रकोपन इतना गंभीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटी में जाने से बचा दे यह तथ्य का प्रशन है

दृष्टांत : क को स गंभीर और अचानक प्रकोपन देता है क प्रकोपन पर स पर पिस्तौल चलाता है जिसमें क का आशय प के जो समीप है किन्तु दृष्टि से बाहर है वध करना ना है और ना ही क यह जनता है की संभव्य है कि वह प का वध करे, क या का वध करता है यहाँ क ने हत्या नहीं कि केवल आपराधिक मानव वध किया है

न्यायाधीश कोक अनुसार क्रोध में आकर साशय किसी को मार डालने तथा सोच समझकर मार डालने में अंतर है जब कोई व्यक्ति क्रोध में किसी का वध कर देता है तो अपराध निम्न कोटि का होता है उस अपराध से जिसमें व्यक्ति सोच समझकर वध करता है सजा से मुक्ति पाने के लिए यह दर्शित करना आवश्यक है कि अपराधी ने उस समय मृत्यु कारित की जब वह प्रकोपित था

वाद के.एम .नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य ए.आई.आर 1962 :- वाद में कहा गया कि इस अपवाद के अंतर्गत गंभीर और अचानक प्रकोपन के निम्नलिखित परीक्षण है

क्या कोई युक्तियुक्त व्यक्ति जो उसी समाज का हो जिसमें अभियुक्त रहता है और उसी स्थिति में रख दिया जाता है कि जिस में अभियुक्त था तो इतना प्रकोपित हो सकता है कि वे आत्म सयम उसी प्रकार खो बैठे जैसे अभियुक्त खो बैठा था कुछ दशाओं में शब्दों और संकेतों द्वारा गंभीर और अचानक प्रकोपन  कारित किया जा सकता है

*क्षति ग्रस्त व्यक्ति के पूर्ववर्ती कार्यों द्वारा सृजित अपराधी की मानसिक अवस्था को भी उस समय में ध्यान रखना रखा जाना चाहिए

*कारित घातक प्रहार तथा प्रकोपन द्वारा सृजित आवेश के बीच सुस्पष्ट संबंध होना चाहिए प्रकोपन का अचानक होना आवश्यक है उस दशा में अचानक माना जाता है जब आवेश को सामान्य होने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल जाता है प्रकोपन को तब गंभीर कहा जाता है जब वह किसी
व्यक्ति के आवेश में लाने की क्षमता से युक्त हो प्रकोपन की परख इसमें कोई व्यक्ति आत्म सयम की वंचित हो जाता है

वाद बुद्ध सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य ए.आई.आर 2013

यह अभिधारित किया गया कि हमारे समाज में पुत्र यह सहन नहीं करेगा कि उसके पिता को मारने पीटने को कहे अपमानित किया जा रहा था इस मामले में अपराध गंभीर और अचानक प्रकोपन के कारण किया गया

वाद राजस्थान राज्य बनाम रमेश ए.आई.आर 2015 उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अपराधी ने अपनी पुत्री को एक लड़के के साथ देखकर क्रोधवेश में आत्म संयम से वंचित होकर पुत्री की हत्या कर दी

मामला धारा 302 के अंतर्गत दंडनीय नहीं अपितु धारा 300 के प्रथम गंभीर एवं अचानक प्रकोपन के अंतर्गत आपराधिक मानव वध होगा और धारा 304 भाग 1 के अधीन दंडनीय होगा