जमानती अपराध से क्या अभिप्रेत है कौन से अपराधों में जमानत ली जा सकती है जमानती एवं अजमानती अपराधों में अंतर बताइए?

New Delhi :- एडवोकेट दुर्गा द्वारा भारतीय न्यायिक सेवा में अनेक बार पूछे गए प्रश्न का उत्तर लिखा गया है आप इससे बेहतर भी लिख सकते हैं यह आपके लिये रामबाण साबित होगा

Question :- जमानती अपराध से क्या अभिप्रेत है कौन से अपराधों में जमानत ली जा सकती है जमानती एवं अजमानती अपराधों में अंतर बताइए?

Answer :- दंड. प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 2 का में जमानती अपराध को परिभाषित किया गया है जमानती अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानती है रूप में दिखाया गया है वह तत्सम पृथक में विधि द्वारा जमानती है बनाया गया है और जमानती अपराध से भिन्न कोई अपराध अभिप्रेत है

दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 436 में किन मामलों में जमानत दी जा सकती है से संबंधित प्रावधान किया गया है

(1)जमानती अपराध में पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने पर पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी और अन्य मामलों में न्यायालय के समक्ष जमानती अपराध के अभियुक्तों को न्यायालय द्वारा जमानत पर छोड़ा जा सकता हैजब वह जमानत देने को तैयार है
(i) अभियुक्त गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत प्रतिभूति नहीं दी जाती है तब तक नहीं छोड़ा जाता है

(ii) न्यायालय निर्धन व्यक्ति को (अभियुक्त) को स्वम् के बंधपत्र पर छोड़ सकता है

(iii) जमानती अपराध के अभियुक्त की जमानत के लिए गिरफ्तारी से 1 सप्ताह में कोई दस्तावेज पेश ना करने पर वह निर्धन समझा जाएगा

(iv) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 116 धारा 446 के अनुसार उसे जांच होने तक अभिरक्षा में निरुद्ध रखना आवश्यक है तब तक उसे धारा 436 में जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा

2 ) जमानत की शर्तों का पालन न करने पर प्रभाव :-
पश्चातवर्ती अवसर पर उसी मामले में जमानत देने से इनकार और धारा 446 (क) के अधीन कार्यवाही कर सकता है

धारा 436 ( क )

इसका ऐसा अपराध जो मृत्यु दंड से दण्डनिये नहीं है उसे अपराध की जांच विचारण या अन्वेषण में अपराध के लिए विनिर्दिष्ट कारावास की अवधि की आधी विचाराधीन कैदी भाग लेता है तब विचाराधीन कैदी का सहित या रहित स्वम् के बंधपत्र पर रिहा होने का अधिकार होता है
न्यायालय लोक अभियोजक को सुनने के पश्चात् तथा लेखबद्ध कारणों से उपयुक्त आधी अवधि के पश्चात् भी कारावास में रखने का आदेश दे सकता है या जमानत पर छोड़ सकता है

भिरू सिंह बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 2014
मोजी राम बनाम उत्तरप्रदेश राज्य 2019 सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि बिना कारण के किसी भी आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है भले ही प्रथम दृष्टया प्रकृति के आधार पर यह जमाना देने उचित माना जाता है

मोतीलाल बनाम स्टेट ऑफ़ एमपी 1970 सुप्रीम कोर्ट इस मामले में यह निर्धारित किया गया कि जमानत देने के एक नियम है तथा इसे खारिज करना एक अपवाद है

 

 जमानती एवं अजमानती अपराधों में अंतर –

जमानतीय अपराध 

[1] प्रथम अनुसूची में वर्णित है 

[2] 3 वर्ष से कम का कारावास या केवल जुर्माने से दंडनिये है 

[3] जमानती अपराध की दशा में अभियुक्त जमानत की मांग कर सकता है 

[4] कम गंभीर मामले हैं 

अजमानतीय अपराध

[1] प्रथम अनुसूची में अजमानतीय रूप में दर्ज किया गया है

[2] ऐसे मामलों को मृत्युदंड आजीवन कारावास या 3 वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनिये है 

[3] अजमानतीय अपराध की दशा में अभियुक्त की मांग अधिकार के रूप में नहीं कर सकता है अपितु न्यायालय का विवेकाधिकार होता है उसे जमानत पर रिहा किया जाए या नहीं 

[4] गंभीर मामला है

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